Tuesday 20 July 2021

अनेक भाषाओं में अनुवादित रचना




 किसी कवि अथवा लेखक के लिए उसका लेखन सृजन ही सर्वस्व होता है। परंतु व्यस्तताओं के चलते कभी-कभी इस लेखनी को अनदेखा कर दिया जाता है जिसका हमारे से पृथक अन्य कोई नहीं है। ऐसे में काव्यात्मक स्पर्श के अभाव में लेखनी कवि के मौन को  गाम्भीर्य भाव से समझती है वह भी आहत है और कवि से कुछ प्रश्न करती है आइये मिलते हैं लेखनी की इस स्व कथित व्यंजना से .... 

आज कल क्यो मौन हो तुम

लेखनी भी प्रश्न करती

भर विरह का कष्ट हिय में

घाव रिसते देख डरती ।।


हिय विदारक व्यंजना से

ये हृदय कम्पित हुआ है

शब्द अटके कुछ हलख में

वेदना का घर छुआ है

खेल की काई भरे फिर 

आँख दिखती और झरती।।


भाग्य फूटा एक दर्पण 

फिर हजारों बिम्ब फूटे

व्याधियाँ हँसती खड़ी सी 

हर्ष को नित और लूटे

कष्ट को लेती बुला फिर 

इक हवा पुरजोर भरती।।


छंद सिसकें गीत रोते

पृष्ठ पर उतरें नहीं ये

लेखनी से क्रुद्ध हैं या 

रूठ के बैठे कहीं ये

रस उलझ के भाव बिखरे

बात इसको ये अखरती।।


संजय कौशिक 'विज्ञात'


*गुरुदेव संजय कौशिक 'विज्ञात' जी की रचना का संस्कृत भाषा में अनुवाद *

*लेखनीयं   पृच्छति।*

धृतम्मौनमिदं  किमर्थं   
लेखनीयं   पृच्छति।
विरहकष्टयुतम्मनस्-
संदृश्य भीतिं गच्छति।।

हृद्विदारकव्यंजना
-या हेतुनेदं कम्पते।
शब्दरोधेनैव कण्ठे 
वेदना च स्पृश्यते।।
क्रीडने चान्वेषमाणं  
नेत्रयुगलं वर्षति।।

दर्पणं ध्वस्तं सहस्रं 
बिम्बयूथं प्रस्फुटत्।
प्राहसन् व्याधिस्सुखं 
नितराञ्च हर्षं प्राहरत्।।
आह्वयन्तीयम्पुनः 
कष्टञ्च श्वासं रक्षति।।

क्रन्दने गीतं रतं 
छन्दश्च  भूयो रोदिति।
पृष्ठतः दूरं क्वचिद्वा 
क्रोधतो वा रुष्यति।।
संभ्रमितरसमाधुरी 
भावो विकीर्णो ग्लायति।

रचनाकार - संजय कौशिक 'विज्ञात'
अनुवादक - वेद प्रकाश भट्ट 'सत्यकाम'




*गुरुदेव संजय कौशिक 'विज्ञात' जी की रचना का हिमाचल की पहाड़ी बोली में अनुवाद *

*अज कल कजो मौन होई*

लेखनी भी प्रश्न करदी
भर विरह का कष्ट हिये च
घाव रिसदे देख डरदी ।।

हिय विदारक व्यंजना ने
ए हृदय कम्पित होई रा
शब्द हलखा च अटकीरे कुछ
वेदना रा घर छुई रा
खेला थी काई भरे फिर 
अख दिखदी और झरदी।।

भाग फुटया एक दर्पण 
फेरी हजारां बिम्ब फुट्टे
व्याधियाँ हसदी खड़ी री 
हर्षा जो नित और लुट्टे
दुखा जो लेंदी बुला फिर 
इक हवा पुरजोर भरदी।।

छंद सिसकण गीत रोंदे
पृष्ठा पर उतरें किथी ए
लेखनियां ने क्रुद्ध होए 
रुसी ने बैठे उथी ए
रस उलझी के भाव बिखरे
गल इनाजो ए अखरदी।।

रचनाकार - संजय कौशिक 'विज्ञात'
अनुवादक - परमजीत सिंह 'कोविद' कहलूरी



*गुरुदेव संजय कौशिक 'विज्ञात' जी की रचना का महाराष्ट्र की मराठी भाषा में अनुवाद *

कोणत्या ही कवि किंवा लेखका साठी त्यांचे लेखन त्यांचे सर्वस्व आहे. पण व्यस्त असल्या कारणाने अनेक वेळा त्या लेखणी कड़े दुर्लक्ष्य केले जाते जिचा आपल्या शिवाय दूसरा कोणीच नही. अश्या वेळेला काव्यात्मक स्पर्शाच्या अभावी लेखणी कविच्या  गाम्भीर्य भावाला समजून जाते. ती ही दुखावलेली आहे आणि कवि ला कही प्रश्न विचारते. तर चला भेटूया लेखणी च्या या स्व कथित व्यंजनेला

आज काल तू गप्प का
लेखणी पण प्रश्न करते
विच्छेदन वेदना हृदयात घेऊन
घाव गळतान पाहून घाबरते

हृदय विदीर्ण करणाऱ्या व्यंजनेने
हे हृदय कंपित आहे
शब्द घश्यात अडकून
वेदनेच्य घराला स्पर्श करत आहे
खेळा मधला डाव संपतो
डोळे दिसतात अजून गळते


प्राक्तन ने तोडलेला एक आरसा 
त्यानंतर हजारो प्रतिमा फुटल्या
व्याधि हसत उभ्या असल्या सारख्या
आनंदाच्या क्षणांना रोज अजून लुटतात
मग कष्टाला बोलवून
एक हवा जोरात वाहते

छंद सुबकले गीत रडले
पण पानावर उतरले नाही
लेखणी वर रागवलेत अथवा
कुठे तरी रूसून बसलेत
रस गुंथून भाव विखुरले
ही गोष्ट ह्याला अखरते

रचनाकार - संजय कौशिक 'विज्ञात'
अनुवादक - नीतू ठाकुर 'विदुषी'


गुरुदेव संजय कौशिक 'विज्ञात' जी की रचना का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद *

English translation


*Why are you silent nowadays .*
Stylus also questions.

By seeing the wound oozing out it gets frighten..
And the heart is filled with the pain of separation..

With painful euphemism 
this heart is trembling ...
Words stuck deep in the throat,
the house of pain is crumbling….

*Fill the moss of the game again.*
*Eyes started shedding more pain.*

Fate is like a broken mirror 
And then exploded thousands of images ...
Ailments laughing loudly 
robbing the happiness and put in cages 

*Strongly blowing wind calls the pain.*
*And welcomes the trouble again.*

Sobbing verses, crying songs 
Don't get off the page .
Mad at the stylus 
Or burning With rage.

*Poetry losing its charm again.*
*Tangled feeling increasing the pain.*

*Pooja Sharma"Sugandh"*



Monday 6 April 2020

नवगीत लिखने के कुछ नियम : संजय कौशिक 'विज्ञात'


गीत के प्रारूप को आप सभी समझ चुके हैं मेरे पिछले संक्षिप्त से परिचय में मैंने गीत के प्रारूप को समझाने का प्रयास किया था जिसके मुख्यतया अंग इस प्रकार थे
मुखड़ा/स्थाई/टेक
अंतरा/कली
पूरक पंक्ति/तोड़
नवगीत में भी इसी प्रारूप पर लेखन होता है। अब गीत को लिख लेने वाले कलमकारों की सरलता के लिए नवगीत लेखन पर कुछ आवश्यक जानकारी जितना मुझे ज्ञात है साझा करता हूँ ...

जैसा कि नवगीत से ही स्पष्ट हो रहा है कि गीत के सभी गुण उपस्थित होने के साथ-साथ कथन में नव्यता नवगीत की पहली पहचान है।
नवगीत को चयनित बिम्ब के माध्यम से लिखा जाता है। इसमें गीत की तरह सपाट कथन नहीं होता।
जैसे सपाट कथन

भोर हुई तो चिड़िया चहकी
पनघट पर पनिहारी थी।

बिम्ब के माध्यम से समझें उसी साधारण पंक्ति

उदियांचल से रवि झांकता
पनिहारिन संग चिड़ियाँ चहकी

उदियांचाल से रवि का झांकना बिम्ब में मानवीकरण करके रवि का झांकना प्रतीक है रवि के उदय होने का।
पनिहारिन संग चिड़ियाँ चहकी में पूर्ण हलचल / गति आ समाहित है कहीं पनिहारिन पानी को जा रही हैं तो कहीं चिड़ियाँ चहक रही हैं दृश्य बिम्ब का अपना ही आकर्षण है।
नवगीत में कल्पना समाहित होती है जबकि गीत में कल्पना वर्जित होती है। गीत छंदों पर आधारित हो सकता है। पर नवगीत के अपने छंद होते हैं। और प्रत्येक पंक्ति का मात्रा भार समान रहता है
नवगीत में मुखड़ा/स्थाई/टेक का मात्रा भार समान रहेगा अंतरा/कली का मात्रा भार अपनी लय धुन के अनुसार कम या अधिक किया जा सकता है।अर्थात अन्तरे की मापनी पृथक हो सकती है।
भाषा के विषय में भी जानकारी साझा करना चाहूँगा हिन्दी भाषा के साथ-साथ आँचलिक सम्पुट का प्रयोग नवगीत को चार चांद लगा देता है। तत्सम तद्भव और आँचलिक सम्पुट से  चमत्कृत भाषाई प्रभाव के कारण   नवगीत का आकर्षण सबसे अलग होता है।

नवगीत के मुख्य बिंदु इस प्रकार से समझे जा सकते हैं  शिल्प की दृष्टि से नवगीत बिलकुल गीत की तरह ही होता है अर्थात किसी भी छंद/लय खण्ड में मुखड़े की एक या दो पंक्तियाँ जिनमें समान्त/पदांत एवम् मापनी के अनुरूप पूरक पंक्ति में भी निर्वाह करना होता है।
अंतरा(पदबंध) दो-तीन या अधिकतम 4-5 जिनकी मापनी मुखड़े के समान या मुखड़े की मापनी से भिन्न भी हो सकती है।

नवगीत और गीत में मुख्य अंतर कथ्य की सपाट बयानी न होकर मुहावरेदार चमत्कारिक प्रभावी टटकी भाषा(आंचलिक शब्द) के प्रयोग से व्यंजना को धारदार बनाया जाता है।प्रतीकों के माध्यम से कथ्य को असरदार बनाया जाता है समकालीनता सम सामयिक संदर्भों से नवगीत का तेवर पाठकों को आकर्षित करता है।

अर्थात नवगीत भी शिल्प की दृष्टि से गीत के मानकों की पूर्ति तो करता ही है साथ ही कथ्य भाव का सम्प्रेषण बिल्कुल नये ढंग से प्रस्तुत करता है। जिसके कारण नवगीत आधुनिक साहित्य की सबसे प्रिय विधा बन गई है।

नवगीत हेतु कुछ स्मर्णीय निवेदन :-

1 सपाट कथन से बचना है।
2 प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग करते हुए अंतरे निर्मित करने चाहिए। या प्रतीक से जो चर्चा हो रही है मानवीकरण के साथ बोलते बिम्ब होंगे तो बहुत सुंदर कहलाते हैं जो नवगीत का आधार स्तम्भ होता है।
3 शब्द संरचना में कुछ नवीनीकरण तत्सम, तद्भव एवं अपने प्रांत के आँचलिक शब्दों  के सम्पुट का प्रयोग करते हुए सृजन हो तो नवगीत अपने स्वरूप को प्राप्त करता है।
4 कथित कथ्य को बिम्ब के माध्यम से ही आगे बढ़ाना चाहिए, जिससे बिम्ब निखरे होने के कारण नवगीत निखर जाता है।
5 मुखड़े की पंक्ति का और पूरक पंक्ति का मात्रा भार सदैव समान रहेगा।
6 अन्तरे की पंक्ति का मात्रा भार मुखड़े के समान, मुखड़े से कम , मुखड़े से अधिक हो सकता है।
7 नवगीत में आँचलिक शब्द प्रयोग कर सकते हैं। पर उर्दू और अंग्रेजी शब्द प्रयोग अमान्य है।

उदाहरण के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है नवगीत के कथ्य, प्रतीक, बिम्ब, व्यंजना, व्यंग्य आदि को ......

भरे समंदर गहरे जा कर
मोती  बीन लिये।
पैरो से तो धरा छीन ली
अंबर छीन लिये।

1
बने हौसले टूट रहे हैं,
कबका सूख गये।
छत्ते ने मधु मक्खी निगली,
हरियल रूख गये।
जुगनू से ले चमक आदमी,
रूप मयूख गये।
कनक चबाये नव जीवन से,
मारे भूख गये।

दूध जहर पी साँप पालते
मरते दीन लिये।
भरे समंदर गहरे जा कर
मोती  बीन लिये।

2
शब्द रसिक से खाते कविता,
समझा सार रहे।
सागर से पर्वत को जाती,
नदिया धार बहे।
अर्थ अनर्थ किये गागर के,
ज्ञानी हार कहे।
श्रेष्ठ हुई ये उत्तम विदुषी
बोली वार सहे।

छंद जड़ित फिर मधुर नमक के,
बाजे बीन लिये।
भरे समंदर गहरे जा कर
मोती  बीन लिये।

3
हुआ मधुर कुछ कडुवा सागर,
दिखता आज यहाँ।
पंगु चढ़े मन पर्वत सीढ़ी,
गिरते देख कहाँ।
दौड़ रहे तन मुर्दे लहरों,
चारों और जहाँ।
नेत्रहीन अब ज्योतिष दिखता,
कहते मूढ़ यहाँ।

केत मृत्यु दे अमर कराता,
घर जो मीन लिये।
भरे समंदर गहरे जा कर
मोती  बीन लिये।

4
विरह वेदना व्याकुल मन की,
भूली बात सभी।
शिशिर चांदनी शीतल जलती,
तम की घात तभी।
तारे चमकें कहीं धरा पर,
खाली नभ वलभी।
शोधित होती मन की बाते,
आये रास कभी।

सूरज चंदा विष-पय वर्षण,
हो गमगीन लिये।
भरे समंदर गहरे जा कर
मोती  बीन लिये।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

गीत लिखने के कुछ नियम : संजय कौशिक 'विज्ञात'


गीत लिखने के कुछ नियम :-

काव्य विधाओं में सबसे आकर्षक विधा गीत कहलाती है, गीत की संगीत के साथ सस्वर प्रस्तुति श्रोता के कर्णमार्ग से हृदय पर सरलता से अंकित हो जाती है। संगीतबद्ध गीत आकर्षक होता है और मंत्रमुग्ध कर देने वाले राग से सुसज्जित हो तो गीत का अपना ही आकर्षण होता है।
स्वर और लय-ताल बद्ध शब्दों को गीत कहते हैं। गीत में दो प्रकार के शब्द प्रयोग में लाए जाते हैं। एक सार्थक जैसे साग , राग जिनका कोई न कोई अर्थ होता है। और दूसरे निरर्थक जैसे वाग, ताग, खाग, इत्यादि का कोई अर्थ नहीं होता है।

आधुनिक काल में गीत के कई प्रकार हैं जो बहुत प्रचलित है। जैसे ध्रुपद, धमाल, ख्याल, ठुमरी, टप्पा, तराना, चतुरंग, लक्षण गीत, भजन, कव्वाली, दादरा, सरगम या स्वर मालिका आदि। स्वर, पद और ताल से युक्त जो गान होता है वह गीत कहलाता है।
अब इस चर्चा को यहीं विराम देते हुए गीत के प्रारूप पर ध्यान केंद्रित कर बताना चाहूँगा कि एक गीत में मुखड़ा/ स्थाई/ टेक होती है जो लगभग 2 चरण से 5 चरण कई बार 8 चरण में भी लिखा जाता है। जबकि सामान्यतः 2 चरण या 4 चरण अधिकांशतः देखा जाता है।
मुखड़े / स्थाई/ टेक के पश्चात इसमें अंतरा/कली लिखे जाते हैं यह भी 4 चरण से 8 या 10 चरण तक हो सकते हैं।
अन्तरा / कली के अंत में पूरक पंक्ति/ तोड़ का प्रयोग किया जाता है। जो मुखड़ा/ स्थाई/ टेक के समान तुकांत जैसा ही होता है यह अंतरा/ कली के तुकांत/समतुकांत से पृथक होता है इसे अंत में प्रयोग किया जाता है।

इस प्रकार गीत का प्रारूप बनता है। गीत को भी बिम्ब के माध्यम से लिखा जाता है इसमें भी प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग अनेक बार देखा जाता है पर अधिकांशतः गीत में प्रतीकात्मक शैली और बिम्ब का आभाव होता है, साधारण शब्दों में गीत सपाट कथन की परम्परा को निभाता है यह सभी रसों में लिखा जाता है गीत में भावपूर्ण प्रस्तुति होती है। गीत एक विषय पर केंद्रित हो सकता है और समसामयिक विषय हो सकते हैं। गीत अद्भुत शब्द शक्ति (वाचक, व्यंजक और लक्षण) से सुसज्जित होते हैं। गीत को अतिरिक्त व्याख्यान से बचाना आवश्यक होता है। और 2 से 4 अन्तरे श्रेष्ठ और अच्छे गीत की पहचान होते हैं।
सामान्यतः गीत की भाषा पर भी हल्का सा प्रकाश डाल देना आवश्यक समझता हूँ। हम जिस भाषा में गीत लिख रहे हैं अंत तक उसी का निर्वहन करेंगे तो उत्तम भाषा का गीत होगा। अन्यथा अन्य भाषा के शब्द मिला कर अपनी भाषा को खिचड़ी भाषा बनाने से नहीं रोक पायेंगे। इस लिए अन्य भाषा के शब्द प्रयोग से बचना चाहिये। कुलमिलाकर कहने का अभिप्राय यह है कि *एक गीत एक भाषा*।
गीत में सार्वभौमिक सत्य प्रमाणिक तथ्य जो हैं वही रहेंगे उनमें बदलाव नहीं किया जा सकता। सामयिक विषय के साथ-साथ सामाजिक बिषय भी गीत का विषय हो सकते हैं वह आपके भाव रस पर भी निर्भर करता है। गीत के प्रारूप को इस गीत के माध्यम से समझते हैं
         ◆ संजय कौशिक 'विज्ञात'

उदाहरण स्वरूप चार चरण तुकांत समानान्त के एक गीत को ले रहा हूँ पाठक इसे पढ़ कर सरलता से समझेंगे और लिखेंगे 
सर्वप्रथम गीत का 

*मुखड़ा/स्थाई/टेक देखें दो पंक्ति में ...*

हमारे गीत जीवन में हमें कहना सिखाते हैं 
लिखें जिस मौन को ताकत वही अनुपम बनाते हैं 

1 *अंतरा/कली जितनी पंक्ति लिखेंगे अंतरा कली में सबके तुकान्त समानांत रहेंगे।*
1
दिखाई दृश्य पर कहदें निखर के बिम्ब बोलेंगे
सृजन की हर विधा के ये अलग ही भेद खोलेंगे 
मगर नवगीत की सुनलो बिना ये बिम्ब डोलेंगे
अलंकारित छटा बिखरे बनाकर गूंज तोलेंगे 

*पूरक पंक्ति/ तोड़ ... इस पंक्ति का तुक मुखड़ा/स्थाई/टेक के समान आयेगा*

सदा प्रेरित करेंगे ये जहाँ सोते जगाते हैं।

*मुखड़ा/स्थाई/टेक दोहराव होता है*

हमारे गीत जीवन में हमें कहना सिखाते हैं 

2 *अंतरा/कली जितनी पंक्ति लिखेंगे अंतरा/कली में सबके तुकान्त समानांत रहेंगे।*
2
प्रकृति की गोद में रख सिर यहाँ से सीख जायेंगे।
सभी ऋतुएं दमक उठती मयूरा उर नचायेंगे।
कभी तो सिंधु सा स्वर ले लहर के साथ गायेंगे।
उतर के भूमि पर तारे बड़े ही खिलखिलायेंगे।

*पूरक पंक्ति/ तोड़ ... इस पंक्ति का तुक मुखड़ा/स्थाई/टेक के समान आयेगा*

महकती है तिमिर में जो चमक जुगनू दिखाते हैं 

*मुखड़ा/स्थाई/टेक दोहराव होता है*

हमारे गीत जीवन में हमें कहना सिखाते हैं 

                *संजय कौशिक 'विज्ञात'*

@विज्ञात_की_कलम

Thursday 2 April 2020

जन्म दिवस : संजय कौशिक विज्ञात (बधाई संदेश)


आदरणीय संजय कौशिक विज्ञात जी को जन्म दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ------!


शुभ तव जन्म दिवस सर्व मंगलम्
जय जय जय तव सिद्ध साधनम्
सुख शान्ति समृद्धि चिर जीवनम्
शुभ तव जन्म दिवस सर्व मंगलम्

प्रार्थयामहे भव शतायु: ईश्वर सदा त्वाम् च रक्षतु।
पुण्य कर्मणा कीर्तिमार्जय जीवनम् तव भवतु सार्थकम् ।।

ईश्वर सदैव आपकी रक्षा करे
समाजोपयोगी कार्यों से यश प्राप्त करे
आपका जीवन सबके लिए कल्याणकारी हो
हम सभी आपके लिए यही प्रार्थना करते हैं

मनुष्य जन्म ईश्वर का सबसे बड़ा उपहार है । सृष्टि में लाखों, करोडों योनियों हैं, पर सबको ये सुविधाएँ नहीं मिली जो मानव को प्राप्त है ।

जन्म दिवस के अवसर पर उपहार देने की परंपरा है । साहित्य से जुड़े व्यक्ति के लिए कविताओं के पुष्प से और क्या अच्छा हो सकता है । बस इसी विचार को ध्यान में रखते हुए जो भी जन्मदिन की कविताएँ इस अवसर पर पटल आई, सबको मिलाकर ई-पुष्प बना दिया । जन्म दिन का ये उपहार आपको सप्रेम हम सबकी ओर से छोटा सा प्रयास है बस !

विगत वर्ष की ढली है रात,
नए वर्ष की नई हो बात,
पुरानी निराशाओं को हरे,
नई उमंगों से हृदय भरे,
प्रियजनों के संग रहें मनंग, 
अंगना बिखरे आनंद के रंग,
आशा का अनुपम सूर्य उदित हो,
जन्म दिन की शुभकामना विदित हो... 

मुख्य संचालिका
अनिता मंदिलवार सपना 
कलम की सुगंध छंदशाला

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हमारे "कलम की सुगंध" मंच के संस्थापक और विधाओं के मार्गदर्शक आ. संजय कौशिक 'विज्ञात' जी निःस्वार्थ अपने साहित्य सेवा देकर लेखन की दशा दिशा को नये आयाम प्रदान करने में अनवरत और अमूल्य योगदान इस कलम की सुगंध मंच के माध्यम से विभिन्न विधाओं के टेबलों में अपने हस्तशिल्प के कलाओं को सदैव परोस रहे हैं। आपने समय-समय पर विधिवत विभिन्न पुस्तकों की समीक्षाएँ और सम्पादन भी किये हैं और कर रहे हैं। भारतवर्ष सदैव आपके साहित्य सेवा पर गौरवान्वित होगा। आप हिन्दी साहित्य के प्रखर सम्पादक बनकर उभरे हैं। आपके कलम के पथ पाकर अनेकों कलमकार अंकुरित हुए हैं और आप गुरु के परम पद को प्राप्त हुए। आपश्री को इस शिष्य का सादर प्रणाम स्वीकार हो बधाई के चंद शब्दों के माध्यम से...

होली सी मस्ती भरे, जीवन में हर रंग।
दहन पीर दे होलिका, साँझ पूर्णिमा संग॥
साँझ पूर्णिमा संग, पिपासा सब मिट जाये।
हो पुलकित विज्ञात, रहें हरदम मुस्काये॥ 
कहे 'जगत' कविराज, भरे सुख शुभ तिथि झोली।
महको सम बागान, जड़े खुशियाँ यह होली॥

       आपके जीवन में हमेशा मंगल स्वर गुंजायमान रहे और साहित्य के विराट मैदान में एक सूरज बन कर चमकें। 
       हमें गर्व है कि हमें आपके चमक से हिन्दी साहित्य के उपयुक्त राह की पहचान हुई और हम आपके पदचिन्हों में चलने का तुच्छ प्रयास आरंभ किये हैं। आशा करते हैं आपके अंगुली नियमित हमारे पंजे में होकर उचित पथ गमन हम करेंगे और आपके साहित्य सेवा को निरंतरता बनाए रखने में सहयोग बतौर छोटा-छोटा प्रयास करते रहेंगे। 
       आज आपके जन्म दिवस पर यह सोशल प्रकाशन आपके व्यक्तित्व को आलोकित करे। यह दिन हमारे साहित्यकारों के लिए एक विशेष पर्व की तरह है। साहित्य जगत इस विलक्षण दिवस को कालजयी करे। इन्हीं ढेरों शुभकामनाओं के साथ...


नरेश कुमार 'जगत'
प्रमुख संचालक
हाइकु विश्वविद्यालय

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आदरणीय संजय कौशिक 'विज्ञात' सर को जन्मदिन की ढेर सारी बधाई और शुभकामनाएं 🎂🎂🎂💐💐💐💐


जन्मदिन संग होली का सुहाना पर्व आया है
हुई रंगीन ऋतु सारी नया उल्हास छाया है
कलम करती नमन झुक कर दुवाएं मांगती है ये
कृपा है ईश की मेरे आपका संग पाया है

गुरु का स्थान दुनिया में सर्वोपरि है।हमारे गुरु आदरणीय विज्ञात सर का जन्मदिन 'कलम की सुगंध' के सभी मंचों के लिए किसी पर्व से कम नही है।उनके निस्वार्थ अथक प्रयासों ने न जाने कितने ही कलमकारों को  लेखन का सही अर्थ बताया है ....उसे आकार दिया। हर विधा पर उनकी पकड़ और सिखाने की अद्भुत कला की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। उनकी रचनाएँ और साहित्य के प्रति समर्पण देख कर मन स्वयं ही नतमस्तक हो जाता है।कलम के मार्गदर्शक का जन्मदिवस हो तो कलम मौन कैसे रह सकती है ।रचनाओं के माध्यम से सभी ने अपनी शुभकामनाएं दी जो कि प्रमाण है की गुरु  के प्रति कितना सम्मान और अथाह प्रेम है सब के मन में।सब की भावपूर्ण रचनाएँ पढ़कर वाणी निःशब्द हो गई। ईश्वर की असीम अनुकंपा है जो हमें ऐसे मार्गदर्शक मिले। ईश्वर उनके प्रयासों को सफल बनायें और साहित्य जगत में उनका कार्य अविस्मरणीय बने। उनका स्नेहाशीष सदा मिलता रहे यही अभिलाषा।गुरुदेव को कोटि कोटि वंदन 🙏🙏🙏

नीतू ठाकुर 'विदुषी'
विज्ञात नवगीत माला
प्रमुख संचालिका

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जन्म दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं  आ0 गुरु जी।आप की साहित्य सेवा ,निज भाषा का  उत्त्थान  के लिए प्रयास और लगन को समर्पित  **



निज भाषा के कूपों में जब
पड़ा छन्द का टोटा
*कौशिक तारा जग में चमका
लिये सृजन का लोटा।

ओंधे मुँह बिस्तर पर सिसकी
कौन करेगा सेवा
लिये थाल *विज्ञात खड़े हैं
खा लो तुम अब मेवा,
रात खड़ी ऊँघा करती,वो
पूरा करते कोटा।।
*कौशिक तारा जग में चमका
लिये सृजन का लोटा।

जले दीप से दीप हजारों
लगन लगी है इनको
ढूँढ़ ढूँढ़ कर लाते पत्थर
रतन बनाते उनको
उन्नत भाषा भाल सजाते
लगा जरी का गोटा ।
कौशिक तारा जग में चमका
लिये सृजन का लोटा ।।

होय खोय को आप भगाते
लिये हाथ में डंडा
शोध निरंतर करते *संजय
थाम हिन्द का झंडा
दिव्य नगीने रच डाले हैं
जब शब्दों को घोटा
कौशिक तारा जग में चमका
लिये सृजन का लोटा।

अनिता  सुधीर

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आदरणीय विज्ञात जी को नमन

लेखनी चलती रही वर्षो से अज्ञात
भाग्य से मिले हमें ऐसे गुरू विज्ञात

जिनसे समझा, सीखा नित नया विज्ञान
बिम्ब, अलंकार, छंद और इसके विधान

कैसे करते जाना नवल धवल प्रयोग
बातों ही बातों में कैसे करते योग

जो न मिलते मुझको ऐसे ज्ञानी गुरू
जीवन नया नहीं हो पाता कभी शुरू

जो कभी मिल जाएँ साक्षात दर्शन
चरण स्पर्श करके शिष्या दे अर्पन

जो हमें शिक्षा दे वही होते है गुरू
जिनके पास ही होता है ज्ञान पुरू

सपना नतमस्तक ऐसे हैं विज्ञात जी
मनोबल सबका ऊँचा करें ज्ञात जी

अनिता मंदिलवार सपना

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विषय - गुरुदेव का जन्मोत्सव
विधा - नवगीत

पल प्रतिपल करते हैं जो
सेवा सतत माँ शारदा की
प्रहरी बन करते रक्षा
सांस्कृतिक शुभ संपदा की

न थकते हैं नहीं रुकते हैं
निसदिन कर्मरत रहते
उल्टा सीधा लिखा हमारा
बिना क्रोध के हैं सहते
ऐसे गुरुवर उदार की
है जन्मतिथि वर्ष प्रतिपदा की
पल प्रतिपल करते हैं जो
सेवा सतत माँ शारदा की

करें कामना परम देव से
रहे सदा सुख की छाया
प्रियजन संग रहें क्षणक्षण अरु
रहे निरोगी मन काया
न घड़ी आये गुरुवर पर
कोई कष्ट वा आपदा की
पल प्रतिपल करते हैं जो
सेवा सतत माँ शारदा की

#अनकही 💐💐

@⁨विज्ञात सर⁩ जन्मोत्सव की अनंत शुभकामनायें मान्यवर🙏🏼

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ज्ञान गीत की रिमझिम बरखा ,
करते गुरू विज्ञात ।

चुप्पी साधे गीत खड़े ,
तृषित छंद थे , गुमसुम ।
स्वर भी, आहें भर कहते,
 हैं सूखे  भाव कुसुम ।
मुरझाईं थी हिंदी कलियां,
सौरभ पड़ा  अज्ञात ।।       
ज्ञान गीत....           

 भाव भार , मात्राओं की,
 रुकी पड़ी थी गाड़ी।
 सरपट सरपट है भागे
 बैठे  सभी खिलाड़ी ।
 गति लय अवबाधित कब होती,
 रुकता न यातायात ।।
  ज्ञान गीत....

हरा भरा हो घर उपवन,
बहे सुखद उर बयार  ।
हर्ष करें , नर्तन आकर ,
सतत कौशिक परिवार ।
 चूम गगन, उड़ें पताका,
  जगत में फैले ख्यात ।।

अमिता श्रीवास्तव 

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नवगीत  16/16
समीक्षा हेतु आदरणीय विज्ञात सर को समर्पित

जब तुमने मुझको ज्ञान दिया

उर प्रफुल्लित हुआ अंतस से
जब शब्दों ने गुणगान किया
मेरी सृजन शक्ति तुझ से ही है
रचना ने बंजर में स्थान लिया

पुरखों के इस उपवन में पुनः
नयी सुबह ने उर -गान किया
जब तुमने मुझको ज्ञान दिया

झर - झर गिरते सुमन लता से
ज्यों बरसे सावन के मोती
स्मरण होते जब दिवस स्वर्णिम
उपवन की हर डाली रोती

यह उपवन बीहड़ बन जाता
तब तुमने इसपर ध्यान दिया
जब तुमने मुझको ज्ञान दिया

हरियाली आती अब वन में
यूँ तरह -तरह के फूल खिले
फुलवारी हो मानो घर में
कहीं पर भी अब न शूल मिले

उपवन के कण - कण को तुमने
जीवन का हर पल दान दिया
जब तुमने मुझको ज्ञान दिया

गणेश थपलियाल

जन्मदिन की शुभकामनायें आदरणीय गुरुदेव 🙏

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आज के विषय पर आदरणीय विज्ञात सर को समर्पित



*काव्य कला के जौहरी*

सौम्य छवि मृदुल मुस्कान,
निर्मल है व्यवहार।
विधा विज्ञ ऐसे लगें,
जैसे हीरक हार।

कविता के है पारखी,
गढ़ते हैं नवछंद।
शब्द-शब्द है बोलता,
ऐसे बाँधे बंध।
भाव-कला से लेखनी,
करे अमृत प्रसार।।

हिंदी भाषा हिय रमे,
सेवाभावी भाव।
नवप्रयोग नित-नित करे,
देखा उनका चाव।
अनुगामी उनके बने,
पाया जीवन सार।।

प्रेरक वचनों से सदा,
सही सुझावें राह।
उत्तम काव्य रचें सभी,
ऐसी उनकी चाह।
अनगढ़ को तराश रहे,
सबकुछ अपना वार।।

अभिलाषा चौहान
सादर समीक्षार्थ

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"अवतरण दिवस"

अद्भुत व्यक्तित्व के स्वामी
उनको कहते सब *विज्ञात*
धीरज उनके पांव पखारे
सारे जगत में विख्यात

अथाह प्रेम भरा दिल भीतर
सहज खोलें हृदया द्वार
बड़े प्यार से शिक्षा देते
जाग्रत करते मन के तार
*संजय* सी है दूर दृष्टिता
है सम्भवतः जन्मजात।।

कभी प्रेम से कभी वार से
शिष्यों को समझाते हैं
हमें बड़ा सुखमय लगता हैं
जब ऑडियो में आ जाते हैं
प्रशंसनीय समीक्षा करके
कहते अनुकरणीय बात।।

शुभदिन पर अवतरण हुआ है
मिले माता का आशीष
*कौशिक* कौतुक करते रहते
कहें इनको हम छंदीश
कुंडलियां,हायकु,कविताई
सृजन करें दिन और रात।।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित



जन्मदिन जी अनंत शुभकामनाएं💐💐💐

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कलम की सुगंध छंदशाला मंच को प्रणाम
विधा गीत
विषय आदरणीय संजय कौशिक ' विज्ञात' जी के जन्मदिन पर आधारित

विज्ञात जी को ,है सब ने पुकारा ।
चमके धरा पे, वो बनके सितारा।।

लाते हैं मिट्टी ,मिलाते हैं पानी।
आकार दे कर,बनाते हैं ज्ञानी।।

कभी गीत ही तो,है सबने बनाया।
बढ़ा कर कदम , मान तो सबने पाया।।

भाषा की ही तो,करी तुमने बातें।
हिंदी बढ़ाई है, दिन और रातें।।

सदा ही दिवस ये, हरदम मनाएँ ।
खाकर मिठाई को, नवगीत गाएँ ।।

राधे कहे आप,हँसते ही रहना।
लिखते रहो आप ,सबसे ही कहना।।

राधा तिवारी"राधेगोपाल"
खटीमा, उधम सिंह नगर (उत्तराखंड)

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नवगीत/भाव समर्पित
आज  के विषय पर
आदरणीय आपको समर्पित🙏 ढेरों शुभकामनाएं जन्मदिन की💐🌹
14/15

आप से मुझको भाव मिले,
खुशियों की एक राह मिली,
लिखती गाती थी मैं भी,
नवगीतों की चाह मिली।

भाव प्रिय है मीठी वाणी,
मिलकर खूब  धूम मचाई,
छंद गीत के परम ज्ञानी,
अभी-अभी मैंभी जानी।

दोहे गीत बनाती मै भी
अब जाके ये बात बनी
लिखती गाती थी मैं भी,
नवगीतों की चाह मिली,
2
 सँघर्ष बहुत  मैंने देखा,
जीवन  पर कुछ लक्ष्य लिए,
हैं समर्पित भाव मन में,
सीखे मन में चाह लिए।

गुनगुनाती लिखती रही,
लेखनीअब जाकर खिली
लिखती गाती थी मैं भी,
नवगीतों की चाह मिली।

स्वरचित पूनम दुबे अम्बिकापुर छत्तीसगढ़🙏

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 जन्म दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।🌹

सुज्ञ विज्ञ अंबर चमक रहे
नभ पर ध्रुव तारा जैसे।
राह दिखाते काव्य रसिक को
विप्र हैं "विज्ञात"ऐसे।

थमा दी लेखनी शत  हाथों
रचाते नव सृजन हरदिन।
ज्ञान का कूप अभ्यांतर
पिपासा बढ़ रही निशदिन।
छलकती मनीषा भी अनुपम
बिंब अनोखे  कैसे कैसे।

राह दिखाते काव्य रसिक को
विप्र हैं "विज्ञात"ऐसे।।

सुहृदय ,अनुशासन प्रतिबद्धत
कर्म निष्ठ विनम्र आचरण।
सेवारत साहित्य मार्ग पर
देवनागरी त्व आभरण ‌
जियो शतक वर्ष तक निरोगी
दे शुभचिंतक संदेशे।

राह दिखाते काव्य रसिक को
विप्र हैं "विज्ञात"ऐसे।।

कुसुम कोठारी ‌।

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जन्मदिन संदेश लेकर ,
चैत्र की नव भोर आई।
इंद्रधनुषी हो गया नभ ,
आज सब बांटे बधाई।।

1
सूर्य की पहली किरण ने,
बाग के जब पुष्प चूमे।
कोकिला की तान सुन कर,
वृक्ष के सब पात झूमे।
ओस बन बिखरे हैं मोती,
तितलियाँ भी गुनगुनाई।

2
शीत लहरों संग रजनी,
पर्व खुशियों का मनाएँ।
रातरानी सी सुगंधित ,
हो गई हैं चहु दिशाएँ।
दे रहा हर पल दुआएं,
चाँदनी भी मुस्कुराई।

3
साधना अविरल करे जो,
छंद को रचते रचाते।
बाँटते हैं स्नेह सबको,
ज्योत जीवन में जलाते।
पृष्ठ पर जब वर्ण बिखरे,
लेखनी भी खिलखिलाई।

4
ईश की अनुपम कृपा से,
आपका आशीष पाया।
हर विधा होगी प्रकाशित,
विदुषी बन विज्ञात छाया।
मिट गया मन का अँधेरा,
धूल भी तब जगमगाई।

नीतू ठाकुर 'विदुषी'

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नव गीत ...
16/15
जन्म दिवस की बधाई आ .विज्ञात जी 🙏🏻🎂

पथिक चल रहा निर्विवाद सा
प्राची फैल रहा मधु राग
आलोक हो रहा किरणों का
कमल खिला लें मुखर पराग

कर्म निरन्तर का प्रतीक है
स्व में भरे अनन्त ज्ञान
चढ़ता चल कर ले विजय राज
भर कर रखता अनन्त भान
रम्य फलक पर नवल चिरय्या
 नव महोत्सव का सुखद राग
आलोक हो रहा है किरणों का
 कमल खिला ले मुखर पराग ॥

प्रगट हुआ सुन्दर नव कौशल
सुषमा मण्डित सुरभि चपल
एक हाथ में कर्म कलश सा
दूजा विचार "विज्ञात" सजल
वसुधा जीवन ज्ञान बह रहा
नव गीत भरें जलज तडाग
आलोक हो रहा है किरणों का
कमल खिला ले मुखर पराग ॥

करता प्रभात का मधुर पान
प्रतिभा प्रखर मुख सहज खोल
हँसी प्रसन्न सी राग भरी
किरने उठ बोली रंग घोल
अवलम्ब बने तू औरो का
बुद्धिप्रकाश का अभिन्न राग
आलोक हो रहा किरणों का
कमल खिला ले मुखर पराग ॥

डॉ़ इन्दिरा  गुप्ता  यथार्थ

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आदरणीय *विज्ञात* जी को समर्पित उनके जन्म दिन के शुभ अवसर पर

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मात्रा - १२/१२

जिनसे सीखा हमनें,
छंद का ये विज्ञान।
व्याख्या से परे कहें,
दिखते यही विद्वान।

त्रेता से कलयुग की,
यात्रा रही है कठिन।
संघर्षी दौर चला,
तब भी ये मुख न मलिन।

देते हैं हमें ज्ञान,
करते सभी सम्मान।
जिनसे सीखा हमनें,
छंद का ये विज्ञान ।

फूल सुगंध का नमन,
जन्मदिवस आया है।
बधाई शुभकामना,
खग गीत सुनाया है।

करिए सभी संज्ञान,
अब बनिए न अनजान।
जिनसे सीखा हमनें,
छंद का ये विज्ञान ।

अनिता मंदिलवार सपना

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परिवार में सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय 🙏🙏
मापनी 13/11
ज्ञान पुंज
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प्रेम भाव से रच रहे
ज्ञानपुंज नवगीत।

आखर आखर से कहे
एक पते की बात।
मोती बन चमकें सदा
साथ रहें विज्ञात।
लेखन से उनके मिले
हमें जगत की प्रीत।।

बिम्ब बिम्ब से कह रहा
हाथ मिला जो हाथ।
निखर रहा हूँ पाय के
संजय तेरा साथ।
शिष्य निपुण हों हर विधा
गुरु हिय लेते जीत।।

हर्षित मन ले व्यंजना
आ पहुँची है द्वार ।
आनंदित हिय से करे
गुरुवर का आभार।
अनुपम रूप दिया मुझे
ओ मेरे मन मीत।।

पूजा शर्मा" सुगन्ध"

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आदरणीय विज्ञात जी के जन्मदिवस के लिए गीत लिखने में देरी हुई, क्षमाप्रार्थी हूं।

12/12
शारदे की कृपा से
गुरुवर ऐसे पाए
ज्ञान सिंधु  से उनके
काव्य पटल खुल जाए।।

जन्मदिन धीमान का
अनगिनत दूँ बधाई
स्वस्थ सुखी जीवन हो
ईश से विनय गाई
क्षण यह बारम्बार
कुटुम्ब सहित मनाए
शारदे की कृपा से
गुरुवर ऐसे पाए।।

अल्पमति मैं विज्ञ का
गौरव कैसे गाऊँ
उनकी बुद्धिमत्ता पर
शीश अपना नवाऊँ
मधुरमयी वाणी से
गीत आपने गाये
शारदे की कृपा से
गुरुवर ऐसे पाए।।

आपकी कृपा से ही
नव विधा सीख पाई
साथ मिल गुणीजन के
धन्य हो गई लिखाई
नवगीतों की माला
कलम कंठ पहनाये
शारदे की कृपा से
गुरुवर ऐसे पाए।।

-निधि सहगल

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संगीता राजपूत: नवगीत  ( गुरुदेव) 14 /12

गुरु देव  का रूप धरे
ईश विज्ञ मे समाहित
दोनो मे है भेद नहीं
हो आशीष प्रवाहित  ----

ज्ञान कुमुद खिली वाटिका
उत्साहित गीत हुआ
झांझर झनकी छंदो की
दोहो का बीज बुआ
अर्चन कर स्वागत कर लो
सुन्दर कर्म पराहित   ।।

ज्ञान नेत्र जब खोल दिये
शिक्षित स्वर गूँजे बोल
ज्योति पुंज पुस्तक गाती
पीस प्रकाश मसि घोल
शत शत वंदन है तुम को
मेधा दीप जनाहित  ।।

धन्य है गुरुवर मेरे
शठ ज्ञानी बना दिया
हम है दीपक शिक्षक ज्योति
तम मे लौ जला दिया
कवियों को भी है विज्ञात
गुरु चर्चा सभा हित  ।।

✍ संगीता राजपूत 'श्यामा

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परम आदरणीय गुरुदेव विज्ञात जी को सादर समर्पित ~

अक्षर अक्षर ज्ञान दिए हैं ,
            पग पग उँगली थाम ।
अति आदरणीय विज्ञात जी ,
       छवि अनुपम अभिराम ।।
***
कंकड़ पत्थर ढूँढ ढूँढ कर ,
                प्रतिमा रहे तराश ।
एक किरण बन अंधकार में ,
             करते दिव्य प्रकाश ।
अनगढ़ से पाषाणों को भी ,
                 देते हैं शुभ नाम ।
अक्षर अक्षर ज्ञान दिए हैं ,
           पग पग उँगली थाम ।।
***
सहज सरल अति सौम्य रूप है ,
             सीधा शांत स्वभाव ।
प्रेम पूर्ण झिड़की से करते ,
                 पार लेखनी नाव ।
गुरुश्रेष्ठ सानिध्य में आकर ,
          सहज सृजन अविराम ।
अक्षर अक्षर ज्ञान दिए हैं ,
           पग पग उँगली थाम ।।


गुरुश्रेष्ठ के लिए एक छोटा सा शब्द पुष्प स्वीकार करने की कृपा करें 🙏🙏🙏
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✍️इन्द्राणी साहू"साँची"✍️
    भाटापारा (छत्तीसगढ़)   
★★★★★★★★★★★★★★★★

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 आदरणीय गुरु विज्ञात जी के जन्मदिवस पर मेरी कुछ पंक्तियाँ



         कुण्डलियाँ

करती सदा प्रणाम हूँ, जय हो गुरु  विज्ञात।
छंद विधा सिखला दिया, मैं मूरख अज्ञात।।
मैं मूरख अज्ञात,सितारा बन अब चमकी।
करने की थी चाह, निष्ठ रहकर तब दमकी।।
कौशिक शाला छंद, सीखने की है धरती।
किया लगन साकार, सदा वंदन मैं करती।।


नव गीत
-----------

भावों के पुष्प समर्पित
चुन लाई  गुरु विज्ञात।
जन्म दिवस हर दम आये।
हों दिन-प्रतिदिन विख्यात ।

छंद विविध प्रकार के
ऐसे लिख कर छाये।
घूम गई  बुद्धि हाय।
सीप चमक दिखलाये।
धूलि रज ज्ञान का अर्पित।
करते रहे आत्मसात ।
भावों के पुष्प समर्पित
चुन लाई  गुरु विज्ञात।

परम गुरु का जन्मदिन
शुभकामना संदेश।
चहुँ दिशा में कीर्ति यश
फैले नित नये वेश।
सब लेखनी चमका रहे
थे लुके छिपे अज्ञात।
भावों के पुष्प समर्पित
चुन लाई गुरु विज्ञात।

जन्म दिन की अनंताशेष मंगलाकांक्षाएँ🙏

अर्चना पाठक 'निरंतर' अम्बिकापुर
सरगुजा छ. ग.

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14/12

आया जन्मदिवस जिनका
मधुर वाणी सौम्य छवि
गुरु बन कर उद्धार किया
धन्य नाम *विज्ञात* कवि
1
शत शत नमन करूँ वंदन
शब्द पुष्प हैं अर्पित
नव गीत गूढ़ सिखलाया
किया सभी कुछ अंकित
गुण दोषों का हुआ भान
जब प्रकट हुए गुरु-रवि
धन्य नाम *विज्ञात* कवि।।
2
मात्रा संशय दूर किया
लय-बाधा समझाई
आलोकित सा मार्ग दिया
चली ज्ञान पुरवाई
लेकर सबको चले साथ
कर दिया साहित्य-हवि
धन्य नाम *विज्ञात* कवि।।
3
मिली कलम को तीक्ष्ण धार
लेखन रंग बिखेरे
विविध विषय पर सृजनकार
शब्द चित्र नए उकेरे
शुभकामनाएं सभी की
खुशियाँ मिलें खूब नवि
धन्य नाम *विज्ञात* कवि।।

------अनीता सिंह"अनित्या"

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शब्द शब्द है रूठे रूठे

मिले नही अलकांर
विज्ञात सर कि जन्मदिन
खुशियां लाए अपार।

लिखे रोज नये कीर्ति
व्यक्तित्व अनोखा पाये
नमन करें स्वीकार मेरा
लिखने में फुर्ती आये।
विज्ञात सर का जन्मदिन
खुशियां लाए अपार।

सूरज बन चमके जग में
खुशियां आये द्वार
सबके चहेते सर जी का
 चमके सदा लिलार।

जन्मदिन की शुभकामनाएं स्वीकार हो।



आरती श्रीवास्तव।

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*जन्मदिन की अशेष शुभकामनायें विज्ञात जी*
🌹🙏🏻🌹मनोरमा जैन 'विभा'

*सं* --संयम वाणी का धरें,
                रखें ज्ञान का मान।
*ज*--जय हो तेरी ही सदा,
                 मन में है  सम्मान ।

*य*--यत्नाचार से सदैव,
             सतत् करते प्रयास।
      लेकर चलते साथ हैं,
            रखें सभी यह आस।
*कौ*-- कौन  पारखी है यहाँ,
             रखें सभी का मान।
जय हो तेरी ही सदा,मन में है सम्मान ।।
*शि*--शिखर तक साथ सदा हो ,
         .        रहे लेखनी  हाथ ।
*क*--करो सतत् प्रयत्न सभी,
             चलो झुका कर माथ।
*वि*--विजया साथ रहे सदा,
               रखते मन में ठान ।।
जय हो तेरी ही सदा ,..
*ज्ञा*--ज्ञान विज्ञात सिखा रहे ,
        कभी कठोर जुबान।
*त*--तम अज्ञान हरते रहो ,
         विभा पुंज तुम  शान
सृजन पथिक करतेे रहो,
          माफ,समझ नादान.।।
जय हो तेरी ही सदा,मन में है सम्मान।
*विभा*

🍃🌹🍃🌹🍃🌹🍃🌹🍃🌹🍃🌹🍃🌹🍃🌹🍃🌹🍃🌹🍃🌹🍃


आत्मीय आभार
गीत
संजय कौशिक 'विज्ञात'



🙏🙏🙏
*होली के दिन परिवार मनाता रहा है*
*पासपोर्ट, आधार, ड्राविंग लाइसेंस पर 25 मार्च है तो अन्य सभी स्थान पर 25 मार्च को ही मनाया जाता है*
🎂🎂🎂



मापनी~~16/16

सुंदर सुंदर वर्ण पिरोकर,
शब्दों की यह गुंथी माला।
चित्त हुआ है निश्चित पुलकित,
नवगीत राग पीकर प्याला॥

1
दिव्य सुगंधित पुष्प गूंथकर,
अक्षर अक्षर बोल रहे हैं।
सपना, विज्ञ, जगत ये विदुषी,
विषय हर्ष के खोल रहे हैं।
विद्योत्मा, सुवासिता, साँची,
कुसुम, विधा, रस घोल रहे हैं।
निगम, यथार्थ, सुधीर, अनुपमा,
गीतांजलि सब तोल रहे हैं।
अमिता, अनिता, निधि, अनुराधा,
बिनोद कहते काव्य उजाला।
सुंदर सुंदर वर्ण पिरोकर,
शब्दों की यह गुंथी माला।

2
शरद, अनित्या, पूजा, पूनम,
अभिलाषा का आभार कहें।
वंदना, आरती, संगीता,
अनंत, गणेश भी सार कहें।
पुष्पलता, मिनाक्षी इंदिरा,
जिग्ना सौरभ विस्तार कहें।
अनुज, अर्चना, आशा, कांता,
प्रतिभा, विभा सपरिवार कहें।
गीत नव्यता करके धारण,
वैजंती को गल में डाला।

3
क्षीरोद्र, देव, पंकज, पम्मी,
सभी का धन्यवाद कहूँ।
विश्व, भावना, रजनी, रानू,
उत्तम सबका अनुवाद कहूँ।
रविन्द्र, मोनिका, शिव, श्वेता
भले नहीं फिर संवाद कहूँ।
सोनू, शुभा, सुशीला, दिव्या,
सुधा, स्नेह, का अवसाद कहूँ।
शंख फूंक कर प्रारम्भ करें,
हृदय आरती दूर शिवाला।
सुंदर सुंदर वर्ण पिरोकर,
शब्दों की यह गुंथी माला।

संजय कौशिक 'विज्ञात'


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