Tuesday 20 July 2021

अनेक भाषाओं में अनुवादित रचना




 किसी कवि अथवा लेखक के लिए उसका लेखन सृजन ही सर्वस्व होता है। परंतु व्यस्तताओं के चलते कभी-कभी इस लेखनी को अनदेखा कर दिया जाता है जिसका हमारे से पृथक अन्य कोई नहीं है। ऐसे में काव्यात्मक स्पर्श के अभाव में लेखनी कवि के मौन को  गाम्भीर्य भाव से समझती है वह भी आहत है और कवि से कुछ प्रश्न करती है आइये मिलते हैं लेखनी की इस स्व कथित व्यंजना से .... 

आज कल क्यो मौन हो तुम

लेखनी भी प्रश्न करती

भर विरह का कष्ट हिय में

घाव रिसते देख डरती ।।


हिय विदारक व्यंजना से

ये हृदय कम्पित हुआ है

शब्द अटके कुछ हलख में

वेदना का घर छुआ है

खेल की काई भरे फिर 

आँख दिखती और झरती।।


भाग्य फूटा एक दर्पण 

फिर हजारों बिम्ब फूटे

व्याधियाँ हँसती खड़ी सी 

हर्ष को नित और लूटे

कष्ट को लेती बुला फिर 

इक हवा पुरजोर भरती।।


छंद सिसकें गीत रोते

पृष्ठ पर उतरें नहीं ये

लेखनी से क्रुद्ध हैं या 

रूठ के बैठे कहीं ये

रस उलझ के भाव बिखरे

बात इसको ये अखरती।।


संजय कौशिक 'विज्ञात'


*गुरुदेव संजय कौशिक 'विज्ञात' जी की रचना का संस्कृत भाषा में अनुवाद *

*लेखनीयं   पृच्छति।*

धृतम्मौनमिदं  किमर्थं   
लेखनीयं   पृच्छति।
विरहकष्टयुतम्मनस्-
संदृश्य भीतिं गच्छति।।

हृद्विदारकव्यंजना
-या हेतुनेदं कम्पते।
शब्दरोधेनैव कण्ठे 
वेदना च स्पृश्यते।।
क्रीडने चान्वेषमाणं  
नेत्रयुगलं वर्षति।।

दर्पणं ध्वस्तं सहस्रं 
बिम्बयूथं प्रस्फुटत्।
प्राहसन् व्याधिस्सुखं 
नितराञ्च हर्षं प्राहरत्।।
आह्वयन्तीयम्पुनः 
कष्टञ्च श्वासं रक्षति।।

क्रन्दने गीतं रतं 
छन्दश्च  भूयो रोदिति।
पृष्ठतः दूरं क्वचिद्वा 
क्रोधतो वा रुष्यति।।
संभ्रमितरसमाधुरी 
भावो विकीर्णो ग्लायति।

रचनाकार - संजय कौशिक 'विज्ञात'
अनुवादक - वेद प्रकाश भट्ट 'सत्यकाम'




*गुरुदेव संजय कौशिक 'विज्ञात' जी की रचना का हिमाचल की पहाड़ी बोली में अनुवाद *

*अज कल कजो मौन होई*

लेखनी भी प्रश्न करदी
भर विरह का कष्ट हिये च
घाव रिसदे देख डरदी ।।

हिय विदारक व्यंजना ने
ए हृदय कम्पित होई रा
शब्द हलखा च अटकीरे कुछ
वेदना रा घर छुई रा
खेला थी काई भरे फिर 
अख दिखदी और झरदी।।

भाग फुटया एक दर्पण 
फेरी हजारां बिम्ब फुट्टे
व्याधियाँ हसदी खड़ी री 
हर्षा जो नित और लुट्टे
दुखा जो लेंदी बुला फिर 
इक हवा पुरजोर भरदी।।

छंद सिसकण गीत रोंदे
पृष्ठा पर उतरें किथी ए
लेखनियां ने क्रुद्ध होए 
रुसी ने बैठे उथी ए
रस उलझी के भाव बिखरे
गल इनाजो ए अखरदी।।

रचनाकार - संजय कौशिक 'विज्ञात'
अनुवादक - परमजीत सिंह 'कोविद' कहलूरी



*गुरुदेव संजय कौशिक 'विज्ञात' जी की रचना का महाराष्ट्र की मराठी भाषा में अनुवाद *

कोणत्या ही कवि किंवा लेखका साठी त्यांचे लेखन त्यांचे सर्वस्व आहे. पण व्यस्त असल्या कारणाने अनेक वेळा त्या लेखणी कड़े दुर्लक्ष्य केले जाते जिचा आपल्या शिवाय दूसरा कोणीच नही. अश्या वेळेला काव्यात्मक स्पर्शाच्या अभावी लेखणी कविच्या  गाम्भीर्य भावाला समजून जाते. ती ही दुखावलेली आहे आणि कवि ला कही प्रश्न विचारते. तर चला भेटूया लेखणी च्या या स्व कथित व्यंजनेला

आज काल तू गप्प का
लेखणी पण प्रश्न करते
विच्छेदन वेदना हृदयात घेऊन
घाव गळतान पाहून घाबरते

हृदय विदीर्ण करणाऱ्या व्यंजनेने
हे हृदय कंपित आहे
शब्द घश्यात अडकून
वेदनेच्य घराला स्पर्श करत आहे
खेळा मधला डाव संपतो
डोळे दिसतात अजून गळते


प्राक्तन ने तोडलेला एक आरसा 
त्यानंतर हजारो प्रतिमा फुटल्या
व्याधि हसत उभ्या असल्या सारख्या
आनंदाच्या क्षणांना रोज अजून लुटतात
मग कष्टाला बोलवून
एक हवा जोरात वाहते

छंद सुबकले गीत रडले
पण पानावर उतरले नाही
लेखणी वर रागवलेत अथवा
कुठे तरी रूसून बसलेत
रस गुंथून भाव विखुरले
ही गोष्ट ह्याला अखरते

रचनाकार - संजय कौशिक 'विज्ञात'
अनुवादक - नीतू ठाकुर 'विदुषी'


गुरुदेव संजय कौशिक 'विज्ञात' जी की रचना का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद *

English translation


*Why are you silent nowadays .*
Stylus also questions.

By seeing the wound oozing out it gets frighten..
And the heart is filled with the pain of separation..

With painful euphemism 
this heart is trembling ...
Words stuck deep in the throat,
the house of pain is crumbling….

*Fill the moss of the game again.*
*Eyes started shedding more pain.*

Fate is like a broken mirror 
And then exploded thousands of images ...
Ailments laughing loudly 
robbing the happiness and put in cages 

*Strongly blowing wind calls the pain.*
*And welcomes the trouble again.*

Sobbing verses, crying songs 
Don't get off the page .
Mad at the stylus 
Or burning With rage.

*Poetry losing its charm again.*
*Tangled feeling increasing the pain.*

*Pooja Sharma"Sugandh"*



13 comments:

  1. अनुवाद का अद्भुत सार्थक प्रयास आप सभी के इस महान कार्य से इस रचना में लेखनी की स्व कथित व्यंजना को अनेक भाषाएं भी मिल गई हैं आप के इस कार्य की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है सादर नमन 🙏🙏🙏

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  2. बहुत ही खूबसूरत रचना और अनुवाद ...सभी को नमन 🙏

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  3. वाह वाह वाह वाह बहुत ही शानदार अनेक भाषाओं में सभी को ढे़रो शुभकामनाएं बहत ही बढ़ियाँ🙏🙏🙏🙏

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  4. आँचलिक शब्द हलख का बहुत सुंदर बिम्ब उकेरा गया है जो उक्त पंक्ति में भरपूर नव्यता का आभास देता है ।हमारी हरियाणवी में हलख का प्रयोग महिलाएँ अक्सर करती पाई गई हैं जैसे एक गिलास पाणी ल्या दे मेरा हलख सूख ग्या ये आंचलिक शब्द है एसे अरबी फ़ारसी के अनेकों शब्द जिन्हें न तो गूगल बाबा बताते हैं और न किसी शब्दकोश में मिलते हैं ।ऐसे शब्द मात्र बोलचाल के दौरान सुने जा सकते हैं ।मैंने इस शब्द को बहुत बार सुना है यह शब्द जितना हरियाणवी में मन को भाता है उतना ही आकर्षक इस नवगीत में प्रतीत हो रहा है ।
    सीता के बिरहा में राम की आँखया तै ना नीर बहा पर हलख भर आया । हरियाणा में तो झगड़े के दौरान भी सामने वाले की बोलती को बंद करने के लिए इस शब्द का प्रयोग उत्साह से किया जाता है वाह अति सुंदर प्रयोग ।बधाई हो 🌹🌹🌹🌹
    डॉ० अनीता भारद्वाज ‘अर्णव’

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  5. वाह बहुत ही सुंदर रचना और अनुवाद नमन 👌🙏

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  6. सादर नमन 🙏🙏आदरणीय गुरुदेव की लेखनी से निकले अनुपम सृजन के अंग्रजी अनुवाद का अवसर प्रदान करने के लिए आदरणीया विदुषी जी का हृदयतल से आभार 🙏🙏🙏

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  7. बेहद खूबसूरत नवगीत और अनुवाद भी बहुत सुंदर 👌👌👌👌

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  8. कविता को समर्पित सुंदर मनोभावों को प्रस्तुत करती रचना और खूबसूरती से किया गया अनुवाद सराहनीय है ।

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  9. इतनी अद्भुत रचना और एक से बढ़कर एक अनुवाद🙏🙏🙏👏👏👏👏👏👏👏👌👌👌👌👌👌👌

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