गीत के प्रारूप को आप सभी समझ चुके हैं मेरे पिछले संक्षिप्त से परिचय में मैंने गीत के प्रारूप को समझाने का प्रयास किया था जिसके मुख्यतया अंग इस प्रकार थे
मुखड़ा/स्थाई/टेक
अंतरा/कली
पूरक पंक्ति/तोड़
नवगीत में भी इसी प्रारूप पर लेखन होता है। अब गीत को लिख लेने वाले कलमकारों की सरलता के लिए नवगीत लेखन पर कुछ आवश्यक जानकारी जितना मुझे ज्ञात है साझा करता हूँ ...
जैसा कि नवगीत से ही स्पष्ट हो रहा है कि गीत के सभी गुण उपस्थित होने के साथ-साथ कथन में नव्यता नवगीत की पहली पहचान है।
नवगीत को चयनित बिम्ब के माध्यम से लिखा जाता है। इसमें गीत की तरह सपाट कथन नहीं होता।
जैसे सपाट कथन
भोर हुई तो चिड़िया चहकी
पनघट पर पनिहारी थी।
बिम्ब के माध्यम से समझें उसी साधारण पंक्ति
उदियांचल से रवि झांकता
पनिहारिन संग चिड़ियाँ चहकी
उदियांचाल से रवि का झांकना बिम्ब में मानवीकरण करके रवि का झांकना प्रतीक है रवि के उदय होने का।
पनिहारिन संग चिड़ियाँ चहकी में पूर्ण हलचल / गति आ समाहित है कहीं पनिहारिन पानी को जा रही हैं तो कहीं चिड़ियाँ चहक रही हैं दृश्य बिम्ब का अपना ही आकर्षण है।
नवगीत में कल्पना समाहित होती है जबकि गीत में कल्पना वर्जित होती है। गीत छंदों पर आधारित हो सकता है। पर नवगीत के अपने छंद होते हैं। और प्रत्येक पंक्ति का मात्रा भार समान रहता है
नवगीत में मुखड़ा/स्थाई/टेक का मात्रा भार समान रहेगा अंतरा/कली का मात्रा भार अपनी लय धुन के अनुसार कम या अधिक किया जा सकता है।अर्थात अन्तरे की मापनी पृथक हो सकती है।
भाषा के विषय में भी जानकारी साझा करना चाहूँगा हिन्दी भाषा के साथ-साथ आँचलिक सम्पुट का प्रयोग नवगीत को चार चांद लगा देता है। तत्सम तद्भव और आँचलिक सम्पुट से चमत्कृत भाषाई प्रभाव के कारण नवगीत का आकर्षण सबसे अलग होता है।
नवगीत के मुख्य बिंदु इस प्रकार से समझे जा सकते हैं शिल्प की दृष्टि से नवगीत बिलकुल गीत की तरह ही होता है अर्थात किसी भी छंद/लय खण्ड में मुखड़े की एक या दो पंक्तियाँ जिनमें समान्त/पदांत एवम् मापनी के अनुरूप पूरक पंक्ति में भी निर्वाह करना होता है।
अंतरा(पदबंध) दो-तीन या अधिकतम 4-5 जिनकी मापनी मुखड़े के समान या मुखड़े की मापनी से भिन्न भी हो सकती है।
नवगीत और गीत में मुख्य अंतर कथ्य की सपाट बयानी न होकर मुहावरेदार चमत्कारिक प्रभावी टटकी भाषा(आंचलिक शब्द) के प्रयोग से व्यंजना को धारदार बनाया जाता है।प्रतीकों के माध्यम से कथ्य को असरदार बनाया जाता है समकालीनता सम सामयिक संदर्भों से नवगीत का तेवर पाठकों को आकर्षित करता है।
अर्थात नवगीत भी शिल्प की दृष्टि से गीत के मानकों की पूर्ति तो करता ही है साथ ही कथ्य भाव का सम्प्रेषण बिल्कुल नये ढंग से प्रस्तुत करता है। जिसके कारण नवगीत आधुनिक साहित्य की सबसे प्रिय विधा बन गई है।
नवगीत हेतु कुछ स्मर्णीय निवेदन :-
1 सपाट कथन से बचना है।
2 प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग करते हुए अंतरे निर्मित करने चाहिए। या प्रतीक से जो चर्चा हो रही है मानवीकरण के साथ बोलते बिम्ब होंगे तो बहुत सुंदर कहलाते हैं जो नवगीत का आधार स्तम्भ होता है।
3 शब्द संरचना में कुछ नवीनीकरण तत्सम, तद्भव एवं अपने प्रांत के आँचलिक शब्दों के सम्पुट का प्रयोग करते हुए सृजन हो तो नवगीत अपने स्वरूप को प्राप्त करता है।
4 कथित कथ्य को बिम्ब के माध्यम से ही आगे बढ़ाना चाहिए, जिससे बिम्ब निखरे होने के कारण नवगीत निखर जाता है।
5 मुखड़े की पंक्ति का और पूरक पंक्ति का मात्रा भार सदैव समान रहेगा।
6 अन्तरे की पंक्ति का मात्रा भार मुखड़े के समान, मुखड़े से कम , मुखड़े से अधिक हो सकता है।
7 नवगीत में आँचलिक शब्द प्रयोग कर सकते हैं। पर उर्दू और अंग्रेजी शब्द प्रयोग अमान्य है।
उदाहरण के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है नवगीत के कथ्य, प्रतीक, बिम्ब, व्यंजना, व्यंग्य आदि को ......
भरे समंदर गहरे जा कर
मोती बीन लिये।
पैरो से तो धरा छीन ली
अंबर छीन लिये।
1
बने हौसले टूट रहे हैं,
कबका सूख गये।
छत्ते ने मधु मक्खी निगली,
हरियल रूख गये।
जुगनू से ले चमक आदमी,
रूप मयूख गये।
कनक चबाये नव जीवन से,
मारे भूख गये।
दूध जहर पी साँप पालते
मरते दीन लिये।
भरे समंदर गहरे जा कर
मोती बीन लिये।
2
शब्द रसिक से खाते कविता,
समझा सार रहे।
सागर से पर्वत को जाती,
नदिया धार बहे।
अर्थ अनर्थ किये गागर के,
ज्ञानी हार कहे।
श्रेष्ठ हुई ये उत्तम विदुषी
बोली वार सहे।
छंद जड़ित फिर मधुर नमक के,
बाजे बीन लिये।
भरे समंदर गहरे जा कर
मोती बीन लिये।
3
हुआ मधुर कुछ कडुवा सागर,
दिखता आज यहाँ।
पंगु चढ़े मन पर्वत सीढ़ी,
गिरते देख कहाँ।
दौड़ रहे तन मुर्दे लहरों,
चारों और जहाँ।
नेत्रहीन अब ज्योतिष दिखता,
कहते मूढ़ यहाँ।
केत मृत्यु दे अमर कराता,
घर जो मीन लिये।
भरे समंदर गहरे जा कर
मोती बीन लिये।
4
विरह वेदना व्याकुल मन की,
भूली बात सभी।
शिशिर चांदनी शीतल जलती,
तम की घात तभी।
तारे चमकें कहीं धरा पर,
खाली नभ वलभी।
शोधित होती मन की बाते,
आये रास कभी।
सूरज चंदा विष-पय वर्षण,
हो गमगीन लिये।
भरे समंदर गहरे जा कर
मोती बीन लिये।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
बहुत उपयोगी जानकारी गीत और नव गीत सीखने वालों के लिए सरल सहज सार्थक पोस्ट।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका हर नया पोस्ट नये मार्गदर्शन के साथ अनुपम रहता है ।
पुनः बहुत सा आभार।
बिल्कुल सही कहा आदरणीया कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा' जी आदरणीय विज्ञात सर के सभी लेख बहुत ही ज्ञानवर्धक होते है। आप 'विज्ञात माला' ब्लॉग पर आई और अपने विचार साझा किए ...आपका बहुत बहुत आभार 🙏🙏🙏
Deleteबहुत सुन्दर जानकारी
ReplyDeleteचमेली कुर्रे 'सुवासिता' जी आपका स्वागत है 💐💐💐उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत आभार। आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए अनमोल है 🙏🙏
Deleteआदरणीय गुरुवर हमें बहुत बार समझा चुके हैं पर हम ऐसे हैं कि फिर भी नहीं समझ पाते हैं।गुरुवर की विद्वता को सादर नमन।
Deleteबहुत ही ज्ञानवर्धक लेख 👌👌👌साथ ही सुंदर उदाहरण।निःसंदेह यह लेख नवगीत सीखने में काफी मदतगार है 🙏🙏🙏
ReplyDeleteगीत और नवगीत के विषय पर बहुत ही सुन्दर जानकारी...धन्यवाद एवं आभार।🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteसुधा देवरानी जी लेख पसंद करने के लिए बहुत बहुत आभार 🙏🙏🙏 यूँ ही अपनी प्रतिक्रियाओं से हमारा उत्साह बढ़ती रहें ....ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद 🙏🙏🙏
Deleteबहुत सुंदर आपकी कविता शब्द बहुत सुन्दर
ReplyDeleteपूनम दुबे 'वीणा' जी स्वागत है 💐💐💐 आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए अनमोल है। ब्लॉग पर आने के लिए आभार 🙏🙏🙏
Deleteबहुत सुंदर जानकारी सर।नमन आपकी लेखनी को।
ReplyDeleteअत्यंत विस्तार से हम सबका ज्ञान संवर्धन करने के लिए आभार।
ReplyDeleteज्ञानवर्धक लेख ,हार्दिक आभार आदरणीय🙏🙏 बहुत सुन्दर उदाहरण 👌👌
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर आलेख
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर जानकारी आदरणीय गुरुदेव बहुत-बहुत आभार🙏🙏🙏
ReplyDeleteआदरणीय 🙏🙏🙏 यदि आप नवगीत की सभी मापनी को भी साझा करदे तो बड़ी अनुकम्पा होगी... मै जाना चाहती हूँ कि किन किन मात्रा भार मे लिखा जा सकता है और इसका क्या विधान है...🙏🙏🙏
ReplyDeleteजी , बहुत सुंदर जानकारी गुरुदेव
Deleteअगर नवगीत के मात्रा के मापनी को भी साझा कर दे तो बङी अनुकम्पा होगी ।
आदरणीय 🙏🙏🙏 यदि आप नवगीत की सभी मापनी को भी साझा करदे तो बड़ी अनुकम्पा होगी... मै जाना चाहती हूँ कि किन किन मात्रा भार मे लिखा जा सकता है और इसका क्या विधान है...🙏🙏🙏
ReplyDeleteबहुत खूब ।।पावन मंच से बहुत कुछ सीख रहा हूं इसके लिए आप सभी आदरणीय गुरु जनों का सहृदय आभार व्यक्त करता हूं।।
ReplyDeleteबहुत अच्छी, ज्ञानवर्धक जानकारी
ReplyDeleteबहुत ही उपयोगी जानकारी आदरणीय श्री 🙏🙏
ReplyDeleteसुंदर जानकारी दिया गया।
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत सुन्दर जानकारी मैने पूरा अद्धयन किया कितने सरल तरिके से गुरदेव ने हम सभी को समझाया है बहुत ही सुन्दर 🙏🙏🙏👌👌👌
ReplyDeleteअति सुन्दर शब्दों में ज्ञान वर्धन
ReplyDeleteनमन आपकी लेखनी और मृदुल व्यवहार को गुरुदेव 🙏🙏🙏
गजब का लेखन है गुरुवर।आप तो गागर में सागर भर देते हो।हार्दिक नमन।
ReplyDeleteआभार आदरणीय गुरुदेव🙇🙇🙏🙏
ReplyDeleteबहुत खूब आदरणीय!नमन
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर जानकारी गुरूदेव जी । नवगीत के बारे में विस्तृत जानकारी साझा करने के लिए आपका धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteआदरणीय गुरु जी को नमन🙏
बहुत ही ज्ञान वर्धक जानकारी ।
ReplyDeleteसीखने के लिए अनुपम जानकारी, बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी💐💐💐
ReplyDeleteबहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी 👌🙏
ReplyDeleteबहुत ज्ञानवर्धक जानकारी गुरुदेव 🙏🙏💐💐
ReplyDeleteवाह बहुत सटीक और ज्ञानवर्धक जानकारी है नवगीत को पूरी तरह से स्पष्ट करती हुई परिभाषा उदाहरण सहित प्रस्तुत की गई है जो नवाअंकुर रचनाकारों के लिए अति उपयोगी मार्गदर्शक और लाभप्रद है।
ReplyDeleteबहुत महत्वपूर्ण और सटीक जानकारी । नमन गुरुदेव और उनकी लेखनी को ।
ReplyDeleteसहृदय आभार गुरुवर, आप तो हमेशा हमें जानकारी देते रहते हैं पर हमारे भेजे में घुसता ही नहीं ,आपकी कृपा से हम जरूर प्रयास करेंगे।बहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteज्ञान वर्धक जानकारी 🙏🙏👍👍👍👍
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ढंग से समझाया और बताया गया है,,इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद,,कृपया और विस्तार से मापनी और पूरक पंक्ति के बारे में भी बताएं👏👏👌👌👌
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